Mar 12, 2012

स्पंदन ( काव्य )

शिक्षा,  संस्कार,  सेवा  और  जागृत  समर्पण भाव
संपर्क, सहयोग हो  सदा, सुख  दुःख में  सम - भाव
संगठित,स्वाभिमानी समाज, सुसभ्य करे विकास
समस्त  मिल-जुल  कर रहे, " मोहन " करे  प्रयास

 ***

कर्म ही पूजा , कर्म ही ईश्वर, कर्म ही जगत आधार
कर्म बिना तो  मानव  जीवन, इस  भू  पर  है  भार
कर्म   गति  पर   होता  निर्भर ,  फलदायी  व्यापार
कर्म  बिना  तो  " मोहन " होता,  विषदायी   आहार

  ***

भाग्य - भरोसे   हीन -  जन ,   पाते   दुःख   अपार
ज्यों तूफ़ान में घिरा हुआ, बिन प्रक्रम डूबे मंझधार
खुद  ही  भाग्य  विधाता ,   लेकिन  ढूढें   यहाँ  वहां
" मोहन "  ऐसे   लोगों  से ,  भरा  हुआ  है  ये संसार
  
    
 

No comments: