शिक्षा, संस्कार, सेवा और जागृत समर्पण भाव
संपर्क, सहयोग हो सदा, सुख दुःख में सम - भाव
संगठित,स्वाभिमानी समाज, सुसभ्य करे विकास
समस्त मिल-जुल कर रहे, " मोहन " करे प्रयास
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कर्म ही पूजा , कर्म ही ईश्वर, कर्म ही जगत आधार
कर्म बिना तो मानव जीवन, इस भू पर है भार
कर्म गति पर होता निर्भर , फलदायी व्यापार
कर्म बिना तो " मोहन " होता, विषदायी आहार
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भाग्य - भरोसे हीन - जन , पाते दुःख अपार
ज्यों तूफ़ान में घिरा हुआ, बिन प्रक्रम डूबे मंझधार
खुद ही भाग्य विधाता , लेकिन ढूढें यहाँ वहां
" मोहन " ऐसे लोगों से , भरा हुआ है ये संसार
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