Oct 24, 2012

VIJAYDASHMI - विजयदशमी


मन  का  रावण  मरे  नहीं ,  पुतले   मारे  जाय 
काम क्रोध मद लोभ में डूबा, इन्सां कितने हाय 

राम नाम है सत से ऊपर, रावण बस अभिमान 
जीत सदा है नेक कर्म की,  बाकी  सब अपमान 

आज्ञाकारी निर्लिप्त रामजी,लक्ष्मण सरीखा भाई 
सीता सत  की  नारी स्वरूपा, देव   भी करे बड़ाई 

दस  अवगुण  भरे  दशानन,  राम गुणों की खान 
अहम  दशानन  ले  डूबा,  सच  का  सदा ही मान 

ज्ञानी  और  शूर  दशानन , खुद  पर  बड़ा घमण्ड 
पाप कर्म से भरता घट जो,  हुआ  खण्ड -विखण्ड 







राम कृपा  थी पवनपुत्र पर, सेवक  सहज  सुजान 
राम-जानकी नाम से पहले, इनको मिलता मान 

जीव-जंतु  स्नेह के बंधक, मिल-जुल  सेना बनाई 
तत्पर  सब  थे राम  काज को, जीत  लंक से  पाई 

राम चरित  है पावन अनूठा, आदर्श ढला है जीवन 
जंगल महल एक से लगते,सुख दुःख में ना विचलन 
                                         
                                                             * JANGIDML / 20121024



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