0320* स्पंदन : होली
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जल थल नभ ये रंग भरे,उड़ती हुई गुलाल
फागुनी गीत चंग बजे,बहकी सबकी चाल
उमंग तरंग चंहुओर है, मादक मस्त बयार
नर-नारी अरि-मित्र ये,फुदके बाल गोपाल
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©jangidml
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संदर्भ : होली। होलिका दहन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी। भक्त प्रह्लाद जो भगवान में विश्वास रखता था, आततायी और नास्तिक पिता हिरण्यकश्यप द्वारा मारने का प्रयास करता रहा। हिरण्यकश्यप द्वारा अपनी बहन होलिका, जो आग में नहीं जलती थी, की गोद में प्रह्लाद को देकर भी मारना चाहा। होलिका का अंत और प्रह्लाद बच गया। बुराई पर अच्छे की विजय को बताता यह पर्व।
अगले दिन धुलेड़ी होली। धुलेड़ी को विभिन्न रंग, गुलाल, पानी आदि से उमंग और उत्साह से होली खेली जाती है। होली खेलने वाली दोस्तों की बनी टोलियां घर घर दस्तक देकर दोस्तों को बाहर निकाल होली खेलते है। फाल्गुन के इस माह होली के संदर्भ में विभिन्न स्वांग करते एवं चंग, डफ आदि बजाकर मस्ती में डूबते है। वस्तुतः यह सहज मानवीय प्रकृति का दिन है। प्रकृति भी साथ देती है अपनी छटा से। छोटे-बड़े, नर-नारी आदि सभी भेद भुलाकर होली खेलते हैं। मथुरा, वृंदावन, बरसाने आदि की होली देखने लायक है।
धुलेड़ी के दिन से कन्याओं और नवविवाहिताओं द्वारा 16 दिवसीय गणगौर पूजन प्रारम्भ। गणगौर पार्वती का प्रतीक और ईशर शिव का रूप।
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(Photo from net not by author.)
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